दिल्ली यूं ही देश की राजधानी नहीं है,
निराली यूं ही दिल्ली की कहानी नहीं है।
बात करते हैं दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम की। बहुत हंगामा , चुनाव रैली और नाटकबाजी के बाद चुनाव सम्पन्न हुआ और परिणाम आप सब के सामने है। आपने क्या देखा क्या महसूस किया। क्या आपने महसूस किया कि असली चुनाव यही था, क्या आपने महसूस किया कि जनता कितनी जागरूकता के साथ सभी चीजों को समझ रही है, क्या आपने देखा कि कर्म का प्रभाव और फल कैसा होता है। वास्तव में यह कर्म का फल ही तो है जो राजनीति आजतक धर्म जाति के आधार पर लड़ी जाती रही वो इस बार काम की तरफ फिसल गई। मैं हमेशा से कहता आया हूं इस देश में हरेक राज्य की सरकार को सबसे पहले शिक्षा पर काम करना चहिए, इस देश में शिक्षा इतना अधिक होने के बावजूद बहुत शिक्षा पर काम करने की बहुत जरूरत है। सोचिए दिल्ली जैसे राज्य की हालत ऐसी थी तो बाकी पूर्ण राज्यो की स्थिति कितनी बदतर होंगी। दूसरा स्वास्थ्य , स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों बिल्कुल बेसिक जरुरत है लोगों की और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है सरकार की, दोनों मनुष्य के दो पैर की तरह है एक भी खराब हुआ तो मनुष्य अपंग हो जाता है। दिल्ली में इन दो चीजों पर विशेष ध्यान दिया गया इसके अलावा बहुत सारी चीजों पर सरकार ने खूब ध्यान दिया। ये सारी चीजें आम आदमी के जिंदगी को सीधा-सीधा प्रभावित किया और यही बातें केजरीवाल के लिए काम कर गया। चुंकि भारत में अधिकांश लोगों को अर्थ जगत की तमाम बड़े बड़े शब्दों जैसे जीडीपी, इनफ्लेशन आदी की ज्यादा न तो समझ है न ही कोई कैलकुलेशन है इसलिए यहां आम आदमी को प्रभावित करने वाला काम होना चाहिए। जब तक आम आदमी अपनी छोटी मोटी समस्याओं से मुक्त नहीं होगा खुश नहीं रह पाएगा। जैसे गुजरात के मोडल को विकास का मोडल माना जाता है वैसे ही केजरीवाल के मोडल को नया पोलिटिकल मोडल माना जाना चाहिए। हालांकि लोग भी अपनी समझदारी का भरपूर उपयोग करते हुए काम के पक्ष में वोट किया और होना भी यही चाहिए कब तक हम ध्रुवीकरण पर वोट देंगे, कब तक हम जाती वाद को गले लगा कर रखेंगे, इस सब बकवास की चिजो से उपर उठकर सोचने की जरूरत है, खुशी की बात है जनता जागरूक हो रही है, काश बाकी राज्यों की जनता भी इस सब घटनाओं से सीख लें और अपने राज्य तथा देश के असली विकास में अपना अप्रत्यक्ष योगदान करें। एक बात और हम जगह जगह और समय समय पर यह सुनते रहते हैं कि राजनीति में बाहुबली, चोर उचक्के ही आते हैं और वहीं लोग टिक सकते हैं मगर ऐसा नहीं है वास्तव में हम जनता किसी शिक्षित और सभ्य राजनीतिक लोगों को समर्थन ही नही करते, हम बहक जाते हैं जाती पर, धर्म पर और गलत बटन दबा कर चले आते हैं ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें शिक्षित लोगों का राजनीति में स्वागत और समर्थन करना चाहिए तभी हमारा समाज आगे बढ़ेगा, हम बढ़ेंगे और हमारा देश भी आगे बढ़ेगा।